blurred Ganesha Idol behind burning diya

एक सवाल

जब दिया जलता है, तब मैं किसको देखूं?
दीप की लौ को, या उसके प्रकाश से दिखने वाली भगवान् की सूरत को?
बड़ा विरोधाभास है, दिया जल रहा है,
इतना बड़ा त्याग है, और अफ़सोस यह की
इस त्याग को भगवान् के चलते मैं देख नहीं पा रहा।
दिए के त्याग को देखूं तो,
भगवान् नज़र में नहीं आ रहा।

क्या ऐसा नहीं हो सकता के,
भगवान् दिए की लौ में नज़र आएं?
या बिन दिए जलाए ही मुझ को समझ
आएं?
दिया बुझ जाएगा, तो भगवान् भी खो जाएगा,
कोई तो होगा, कोई तो होगा उपाय,
की भगवान् मुझमें चिर स्थापित हो जाएँ?

बड़ी समस्या है तुझको इन्द्रियों से छूने की प्रभू,
अब इनसे आगे बढ़ जाऊँगा मैं,
अपने अन्दर से ही तुझको बनाऊंगा मैं।
पर मेरा वस्तुज्ञान विरोधाभास देता है फिर,
तू सिर्फ मुझ
में ही नहीं, पर संपूर्ण मैं मिलता है,
ऐसा मेरा ज्ञान कहता है!

मुझ में भी तू उतना ही पूरा है, जितना मुझमें नहीं है,
तब तक न मिल पायेगा तू जब तक मेरा अस्तित्व अधूरा है।
बस, होश में रह कर तुझको पाउँगा,
और पाने के बाद सबको बताऊंगा
(पर क्या वे तैयार होंगे, इसका न अनुमान है)
शायद इसी लिए फिर, तुझमें समाधि पाऊंगा।

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