imagining familiarity

मैं तो मर जाऊं अगर सोचने लग जाऊं उसे,

और वोह कितनी सहूलत से मुझे सोचती है,

कितनी खुश-फहम है वो शख्स के हर मौसम में,
एक नए रुख, नयी सूरत से मुझे सोचती है,

मैं तो महदूद से लम्हों में मिला था उस-से
फिर भी वो कितनी वजाहत से मुझे सोचती है

(Source: Sadiya Merchant)

(Image Credits: Google)