एक कारण है कि ऐसा कहा जाता है के तन होता है मिट्टी का, और मन होता है शीशा। इसलिए नहीं की शीशा आसानी से टूटता है, मिट्टी भी कोई ख़ास लचीली नहीं होती, पर इसलिए के शीशे में कोई तस्वीर उतर सकती है। पर एक ख़ास वजह भी है जो मन को शीशे का बताया गया, कांच का नहीं। कांच में कोई तस्वीर नहीं उतर सकती। पर शीशे की भी एक खासियत है, तस्वीर तभी तक रहती है जब तक मूरत सामने हो, मूरत हट जाए तो शीशा भी खालीपन ही दिखता है। एक कारण है जो दिल को शीशा कहा जाता है। सोचने में बड़ा अजीब सा लगता है, कांच और शीशा, कांच, और शीशा, अंग्रेजी में कहने में कठिनाई होगी, इसीलिए इस अलंकार को हिंदी में ही पिरोना पड़ेगा, अंग्रेजी में तो ‘हार्ट इज़ अ कैसल ऑफ़ ग्लास’|
You know, my heart, *points at the heart with two fingers*, is a mirror. But I also keep paint buckets, and soil, and water near it, that whenever it is risking at showing an unattainable reflection - I throw some water, soil and paint on it. So that it doesn't... break. It takes a while for the dirt to settle down, but that much healing time is usually, usually enough for the reflection be out of sight, as the person's distance from me increases. I also fill my eyes up with distractions to cope with it, some are visible antics, while others are plain, mental obfuscations.