जीवन के सफर में बहुत सारे मोड़ आते हैं | यह कहना उचित होगा कि जीवन एक मोड़ों की श्रृंखला है | पर थोड़ा ध्यान देने पर दीखता है कि इन में से मोड़ बहुत कम और द्विमुखी विभाजन बहुत ज्यादा हैं, हर जगह रास्ता दो में टूटता जाता है | केवल मोड़ ही होते तो हमें हर बार खड़े हो कर यह न सोचना पड़ता कि अब क्या करें ? कम से कम एक दिशा तो होती | इसी दुधारी तलवार ने न जाने कितनों के साथ मज़ाक किया होगा | लोग कहते हैं कि ज़िंदगी रोज इम्तिहान लेती है, सही कहते हैं, लेकिन ज़िंदगी रोज एक ही इम्तिहान नहीं लेती, रोज एक नया प्रश्न, रोज एक नया मोड़, रोज एक चयन |
कुछ मोड़ों पर हमारे साथ कुछ और साथी भी पहुँचते हैं | मैं बार-बार मोड़ कह कर क्यों मोड़ों को बदनाम कर रहा हूँ | मोड़ों में अनिश्चितता ज़रूर है, परन्तु दिशाहीनता नहीं, एक बार चल पड़े तो लड़ मर कर कहीं न कहीं पहुँच ही जाएंगे | माफ करना ! इन विभाजनों पर हमारे साथ कुछ और लोग भी पहुँचते हैं, सभी की पीठ पर कुछ न कुछ भार लदा हुआ है, सब अपना सफर तय करने चले हैं | बात बस इतनी है कि दो घड़ी के लिए बातें कर के मन सफर के कंटकों से हट, बातों के रस में खो जाता है | दूरी कट जाति है, पर लगता है कि दूरी घट गयी हो | और फिर आता है इम्तिहान |
कुछ पल की यारियाँ बहुत कुछ बदल देती है, और मन का क्या है, कवि कितनी ही श्रेष्ठ उपमाएं दे कर इसे सुसज्जित क्यों न करें, एक मांसपेशी है | उपयोग करो तो ठीक, वरना ढीली पड़ जाती है | और दोस्तों का भी क्या है, उनकी यादों का भी क्या, क्योंकि अभी मिले थे, इसलिए बिछड़ना भी वेदना पूर्ण जान पड़ता है | अगले पड़ाव तक स्मृति क्षीण होने लगेगी, उस से अगले पर याद भी न रहे, ऐसा भी हो सकता है |
पर कुछ सहचर बहुत देर तक साथ निभाते हैं, इनसे आज आगाह करना चाहता हूँ, क्योंकि इन्हीं का वियोग सबसे ज्यादा सताएगा | हाँ और एक बात और, न तो इन सहचरों की मंजिल तुम हो, और न भावनाओं के वेग में आ कर तुम उन्हें अपनी मंजिल समझ बैठना क्योंकि ज़िंदगी रोज इम्तिहान लेती है, और तुम्हारी परीक्षा में उनको नहीं बैठना है, तुम्हारी लड़ाइयां कभी भी उनकी नहीं होंगी, होने भी मत देना | और न कभी उनकी लड़ाई का बोझ अपने कन्धों पर लेना, क्योंकि लड़ाइयां तोड़ देती हैं | बस अपनी हैं - जितनी हैं, काफी हैं |
बहुत पल ऐसे आयेंगे जब तुम असमंजस में पड़ जाओगे, कौन सी राह चुनूँ | बहुत लोग आये और चले गए, सभी के जीवन में ऐसे चुनाव के क्षण आये होंगे | याद रखना कि जब तुम ऐसे क्षणों में अपने आप को अकेला पाओ, जब सहचर आगे बढ़ गए हों, जब कुछ सहचर अपना भार तुम पर लादने की कोशिश कर रहे हों, वही करना जो उन सब ने किया था जिनकी कहानियां पढ़-पढ़ कर तुमने यहाँ तक आने का हौसला पाया है |
एक बात और, दुनिया से तभी लड़ पाओगे जब अपने आप से संधि कर खुद को खुश और शांत करोगे | जो सब करें तुम भी वही करो तो एक बात होगी, पर तुम वह करो जो मन कहे तो बात ही कुछ और होगी | कुछ मुकाम अभी भी हैं बाकी, सफ़र जारी है |