करीब ग्यारह बजे का समय होआ | टका बेंच पर बैठ कर मैं और सौरव चाट-पापड़ी और गोल-गप्पे खा रहे थे | अजय सुट्टा पीने के लिए लक्कड़बाज़ार की और गया था | तभी एक लड़का और दो लडकियां वहाँ आये और साथ वाली रेडी पर चाट खाने लगे | मुझको उनमे से एक लड़की का चेहरा जाना पहचाना सा लग रहा था | किनारे से देखा था और चाट पर ज्यादा ध्यान होने के कारण, बात जैसे सूझी थी, वैसे ही थोड़ी देर के लिए ध्यान में न रही | पर जब उसने भी देखा, तब ध्यान आया, की हाँ, यह मेरी सहपाठिन रह चुकी है | मैंने सर को हलके से झुका कर सलाम का इशारा किया, उसने भी मुस्कुरा कर अभिवादन किया | थोडा दिमाग पर जोर डाला तो नाम भी याद आ गया – निकिता | मैं उठ कर थोडा आगे गया और हाल चाल पूछे – इस से ज्यादा न तो मुझको दुनियादारी आती है, और न समझ | बस इतना ही पुछा, के आजकल शिमला में ही हो क्या, उत्तर में हामी मिली | उनकी टोली आगे बढ़ गयी | सौरव पीछे बैठा सब देख रहा था, और पता नहीं क्यों, कुछ हैरान परेशान सा मालूम पड़ता था | जब मैं वापिस आया तब उसके पूछने से पहले ही मैंने बताया कि मेरे साथ पढ़ती थीं | वह उस समय चुप रहा |
जब पाँच मिनट में अजय और देवेष वापस आये तो उनको चिढाने लगा, “तुम जानते नहीं तुम क्या नहीं देख पाए” | ‘अभी इसकी (मेरी) एक बड़ी सुंदर सी क्लास-मेट मिल कर गयी, मुझको तो सच्चा वाला प्यार हो गया है’ | अगर अजय को घडी दो घडी के बाद सिगरेट की प्यास हो आती थी, तो सौरव को घडी दे घडी के बाद, ‘सच्चा वाला प्यार’ होता था | ‘सच बता, क्या सही में अच्छी थी क्या?’ अजय ने मुझसे पुष्टि करने के लिए पुछा | जो अभी तक मैंने नहीं सोचा था, वह बातें दिमाग में मंडराने लगीं | सबसे पहले ध्यान हो आया की वह कैसी दिखती थी –अच्छी, और अब – और भी अच्छी | वह कहते हैं न “शी हैज़ ग्रोन इनटू अ ब्यूटीफुल वुमन” – बस वही | तीखे नैन-नक्श, हलके रंग का स्वेटर, जींस, कैनवास के जूते, और फिर भी सादगी | मैंने भी हामी भर दी | फिर अजय के नखरे शुरू हुए – ‘क्या यार, मुझको बुलाया क्यों नहीं, फ़ोन कर देते’, देवेष ने भी सुर में सुर मिलाया | बात वहीँ चाट के साथ जैसे तैसे हजम करवाई, वरना मेरा जीना मुश्किल |
आज फिर बेखयाली में उन्ही फोटो को देख रहा था, तो निकिता फिर से याद आई | दसवीं क्लास की निकिता, जब मैं सबसे लड़ा करता था | वह भी लडती थी, हमारी क्लास में सभी लड़ा करते थे | एक दिन अपने दोस्तों में वह ‘ट्रुथ या डेयर’ खेल रही थी | हारना किसे पसंद है, उसने भी डेयर माँगा था, मिला – अँशुल को यह पंक्तियाँ दो बार सुना कर आओ, “मेरे दिल का तुमसे है कहना, बस मेरे ही रहना, नहीं तो, समझे”, हाथों के इशारों समेत | यह एक गाने की पंक्तियाँ हैं, जो गाना मैंने उस समय नहीं सुना था | जब उसने मेरे पास आ कर एक सांस में यह कहा था, मैं हैरान रह गया था – यह अभी ‘क्या’ बोल कर गयी? यह क्या अनभिज्ञता का था, क्योंकि जिन्होंने उस गाने को देखा या सुना न हो, वह नहीं बता सकता कि उसका तात्पर्य क्या है | क्योंकि आखिर में ‘समझे?’ था, मैंने गर्दन हिला कर ना का इशारा किया | निकिता ने एक बार और वही वाक्य दोहरा कर अपना डेयर पूरा किया, और उसके सभी लोग खिलखिला कर हंस दिए | मैं हैरान रहा, मुझे दूसरी बार भी समझ नहीं आया |
सच मानिए, वह गाना मैंने इस घटना के करीब 5 साल बाद देखा होगा, और जैसे ही देखा, मैंने अपना माथा जोर से पीटा था, ‘नालायक, यह मतलब था उस गाने का!’ | उल्लू कहीं का, या शायद, यहीं का | सोचता हूँ उनको भी बता दूं अपनी यह बेवकूफी, हो सकता है कि उनपर थोड़ी मुसकराहट मेरी वजह से भी आये, पहले तो हम लड़ते ही थे |