Trident making figure 3

(स्रोत)

बेतकल्लुफ़

बहुत दिन बीत गए हैं यहां पर कुछ लिखे हुए। हिंदी में लिखे हुए तो शायद सहस्त्राब्दियाँ बीत चली होंगी। क्या करूँ, कुछ ख़ास बताने लायक नहीं है। या शायद, कुछ ज़्यादा कहने लगा हूँ अब, इतना की कुछ बताने से पहले ही बता देता हूँ।
ये रीत रिवाज़ भी कितने पुराने होते होंगे न, और न जाने कैसी सहनशक्ति है इनमे कि सदियाँ झेल जाते हैं। इतना ही नहीं, मुझको बड़े ही अनजान से मोड़ों पर मिल कर, कोई भूली बिसरी याद ताज़ा करवा जाते हैं। हमारे जीवन में भोजन की आवशयकता बड़ी उल्लेखनीय है। कितनी ही कहानियाँ, कितने ही किस्से भूख से जुड़े होते हैं। एक पेट की भूख, और दूसरी शायद दिल की। संतुलन तो ज़रूरी है, पर सभी पूजाएं पेट पूजा के बाद ही आती हैं। किसी ने कहा भी है, आदमी के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर गुज़रता है|
हमारी मेड वक़्त की बिलकुल भी पाबन्द नहीं है। कभी कभार सांय 6 बजे भी आ धमकती है, और कभी 9 बजे भी दौड़ती हांफती पहुँचती है। बहुत समझाया। पूर्वजों का ज्ञान बखान किया - पूर्वज सूर्यास्त होने से पहले भोजन कर लेते थे (झल्ला कर मन ही मन अपनी बात का काट भी किया, उस ज़माने में बिजली के संसाधन उपलब्ध नहीं थे, मशालों की रौशनी कितना उजाला बिखेर सकती थी भला?)। नहीं सुनी। आधुनिक अनुसंधान को सरल शब्दों में सुनाया -अनुसंधान संकेत करता है कि खाना यदि विश्राम करने से कम से कम 3-4 घंटे पहले खाया जाए तो पाचन क्रिया सही रहती है। साथ ही साथ, भोजन चर्बी में तब्दील नहीं होता, और मोटापा दूर रहता है। नहीं मानी। साम दाम से काम न चला तो दंड और भेद दिखाया - यदि 8-8:30 तक नहीं पहुंची तो किवाड़ नहीं खुलेंगे (और पगार भी कटेगी)। पर शायद अनुभव उनको खाली धमकियों की परख करना, और गरजने व बरसने वालों में पहचान करना खूब सिखा देता है। अंततः वो मनमौजी ही रही है। अब देर होने पर एक तक्कलुफ भरी 'सॉरी' भर बोल देती है - फिर ढाक के वाही तीन पात।
ऐसे में, जब वह देर से आती है, तो मैं जल्दी खाना खाने की कोशिश करता हूँ। उसे शायद खाना परोसना अच्छा लगता है। घर में माँ को भी बिलकुल पसंद नहीं है की कोई उनसे बिना मांगे हाँडियों और कूकर से खाना निकाले – भई, रसोई किसने बनायी? एक दिन ऐसे में ही जब मैंने खाली थाली उसके सामने रखी, तो सब्ज़ी परोसने के बाद रोटियां रखने लगी। मैंने कहा, तीन रोटियां रखना। उसने दो रोटियां थाली में एक साथ राखी, और फिर तीसरी को रखने से पहले उसने थोडा सा टुकड़ा तोड़ कर किनारे रख लिया | मुझको हंसी आ गयी। उस दिन खाना बहुत आनंद में खाया गया।

अजीब है न ये तीन का आँकड़ा? माँ ने घर में कितनी ही बार ऐसा किया होगा। कहती थी, तीन रोटियां नहीं दी जाती, अशुभ होता है। हमारी मेड शायद बिहार से है, पर उसका भी यही मानना है। तीन तिगाड़े, काम बिगाड़े | तीन से त्रिशंकु, और तीन से ही त्रिमूर्ति, तीन से ट्रिनिटी, और तीन ही गुण, तीन ही अशुभ भी | ये मनु की संतानें भी कमाल की हैं। कहाँ-कहाँ बस जाती हैं, और वहाँ घर बना लेती हैं। फिर भी, कितने ही छोटे छोटे रूपों में अपने उद्गम को संझो कर रखती हैं!