तुम सुनो तो बोलूं सब
घेरे मुझ पर भी हैं हज़ारों,
कुछ अपने आप ही लादे हुए -
कपड़ों और चेहरों जैसे,
एक उतारता हूँ दूसरा चढ़ाता हूँ
(एक ठूंठ हूँ अभी हरा)
कोई नया परिंदा नश्तर से,
मेरे सीने पर दिल नोच जाए -
एक नयी छाल चढ़ा कर,
और इक गिरह बनाता हूँ
आओ तो बूहे खोलूं अब