अजीब है यह मन | कितना भटकता है | अगर चलने के लिए दो पैर दे दूं तो न जाने कितने ब्रह्मांड टाप जाए| इतनी चंचलता है इसमें की ज्यों ही इसे ऐसा आभास होता है की कोई देख रहा है, फुर्र हो जाता है| कभी देखा है इसे भागते हुए? या कहीं ठहरते हुए ही देखा हो? एक उतावलापन है, इतना सब है बताने के लिए कि कुछ भी ठीक से नहीं कह पाता | हकलाता है | जब तक बेफिक्री थी जीवन में, इस मन ने भी खूब दौड़ लगाई | शायद यह सबका ध्यान अपनी और आकर्षित करना चाहता है | सतरंगी सा है, बच्चे जैसा|
पर आज लगता है कि कुछ रुआंसा हो कर बैठा है किसी कोने में | और मैं सिकाइअट्रिस्ट से पूछता हूँ की अब सपने क्यों नहीं आते?
(Nevertheless, I did find out a reason for the absence, after a long, long period. I killed the alarm and it serves me right.)
Meanwhile, listen to this song if you like.
Title: Serenity. By: Godsmack
(Image Credits: Google)