आज यों ही याद आ गया कि यदि भोजन हाथों की अंगुलियों से किया जाए तो क्षुधा जल्दी शांत होती है, तृप्ति हो जाती है | कहते हैं कि भोजन का आनंद तभी आता है जब अधिकतम स्वादेंद्रियाँ उसका लुत्फ उठा सकें | बड़े समय से मन में हलचल सी थी, कुछ दिन पहले वह कमरे की सजावट बदलने में प्रकट हुई, तो आज यों ही दफ्तर से छुट्टी लेने में | पुराने ढंग से ऊब गया था, सो बदल दिया | अब बिस्तर के सामने दरी बिछाई है, सुबह नीचे पैर रखते ही ठण्ड से ठिठुर कर चप्पल नहीं तलाशनी पड़ती |
शाम को मेड ने राजमा चावल बनाए, बिना टमाटर के | टमाटर खत्म हो गए थे और किसी का भी चार कदम चल कर खरीद लाने का मन न था | हाँ तो आज अकस्मात ही याद आया कि भोजन करने का आनंद अंगुलियों से खाने में है | यही सोच कर हथियार डाल दिए | चम्मच चम्मच्दानी में रख, पानी का गिलास भरा और साथ के लिए ले ली हरी मिर्च |
पर खाते-खाते ख्याल आया कि आनंद आने के लिए भोजन में भी एक तत्व कि आवश्यकता होती है, स्वाद की | अब मेड कोई घर की सदस्या तो है नहीं जो प्यार से बनाए | हाँ पर दिल की बड़ी साफ़ है, हमारे मजाक का बुरा नहीं मानती | हममें से एक पर तो उसका विशेष स्नेह है | यह बात अलग है कि वह मित्र काम काज में इतना व्यस्त रहता है कि घर में तो मानो ईद का चाँद हो, और मेड उसके वियोग में हमें ज़रूर स्वाद से वंचित रखती है |
एक बार मन में आया कि उस से कह दूं, फिर कहते कहते रुक गया ‘खाना ऐसा बनाओ जैसा अपने घर वाले के लिए बनाओगी’ | ‘घर वाला’ कुछ ज्यादा ही हो जायेगा, ‘घर वालों’ से बात नहीं बन पायेगी | हार कर ऐसे ही खाने की ठानी | पर उसी समय न जाने कौन कम्बख्त याद कर बैठा जो निवाला नीचे उतरने से पहले ही हिचकियाँ आने लगी | या शायद, मिर्च का असर है, हाँ वही होगा |