इस रेशम के धागे के,
आओ सिरे थाम लें,
एक किनारे से तुम होते आओ,
दूजे से मैं चल पडूं,
इस डोर को समेटते हुए,
जहां भी हम मिलें,
आओ वहीँ एक सुलझा हुआ,
छोटा सा एक घर बनाएं,
मैं न भूलूं तुम्हारा किनारा,
तुम मुझको भी थाम लो,
ऐसे नवल सामंजस्य को,
कुछ ऐसा तुम नाम दो...
अधूरी...