पीपल के प्रेत

उस पीपल के पेड़ की ठूंठ में मैं कभी कभी धागों की डोर बाँध आया करता था।
कुछ सवाल, कुछ अधूरी बातें, कुछ खुले सिरे छोड़ आया करता था, कि कहीं उनको मेरे पास आने का बहाना न मिले, तो उन खुले सिरों को ऐसे पकड़ ले जैसे बात मैंने छेड़ी हो।
नियम से मैं वहाँ धागे बाँधा करता था, पुराने धागे के ऊपर एक नए धागे की परत।

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इन मन्नतों के धागों सी कितनी ही अधूरीे
बातें, तुम्हारी चौखट पर बाँध आता हूँ,
की कहीं तुमको मुझसे कहने के लिए
बातें, न तलाशनी पड़ें ।

कभी मिलने का मन हो आये तो
वजह, कम न पड़ जाएँ,
कोई भी धागा चुन कर, उसे वजह बता देना
मैं, हंस कर किसी मन्नत का फल मान लूँगा ।

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पर न कोई सन्देश आया और न ही वो, और एक दिन, वह पीपल का पेड़ मेरे धागों के फांद में दम तोड़ बैठा।
फैसला किया अब कभी धागे न बांधूंगा, न पीपल के पेड़ों के पास से ही गुजरूँगा।
कहते हैं पीपल के पेड़ों पर आत्माएं और प्रेत बसते हैं - मुझे तो लगता है, अधूरी आसें उन खुले सिरे वाले धागों के रूप मैं वहाँ इंतज़ार में अटकी पड़ी हैं।

Peepal tree