मैं, अनघड़ सा एक बाग़बान।

कली मुरझाती सी जाती थी,
और मैं अनघड़ सा बाग़बान,
उसे सींचता ही चला गया,
मेरे सिंचन और चिंतन ने,
उस नन्ही कली को गला दिया!

फिर, रुत आयी ग्रीष्म की,
और मैं पिछली मात से कुंठित सा,
रूठा हुआ बैठा उस पौधे से,
जिस पर कली न खिल पायी थी
उसे कम, न्यूनतम सींचा किया
वर्षा की आस में इक दिन,
वह पौधा ही दम तोड़ बैठा

मैं अनघड़ सा बाग़बान, रो बैठा।

Aesthetic Blasphemy | Rookie's balancing act
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