लाल रंग
ऑफिस में लंच करते हुए यहाँ वहाँ की बातें होती हैं | आम तौर पर एक-आध मित्र की खिंचाई करते हुए ही भोजन खत्म हो जाता है | यहाँ ‘मेरे वाली’, ‘तेरे वाली’ और ‘भाभी’ जैसे एकवचन विशेषण कम पड़ जाते हैं, ‘तेरी पहले नंबर वाली’, ‘दूसरे नंबर वाली’ जैसे कोड शब्दों से उन मित्रों की कवितायों के प्रेरणा स्रोतों का परिचय होता है | बस दूर से पसंद करते हैं, ‘आज बहुत अच्छी लग रही है’ जैसी टिप्पणियाँ भी करते हैं, ‘यार बात करवा दे’ भी कहते हैं, और बात करवाने के लिए उठो तो खींच कर नीचे भी बैठा देते हैं | पहले बुरा भी लगता था, इतनी अच्छी लगे तो बता दो, फिर लगा, यहाँ चुप चाप बैठ कर खाना खाने में कौन सा मनोरंजन हो रहा है? बस संज्ञा हैं, इन नामों से उनका संबोधन करने का साहस हम में नहीं है, और न ही मन | अपने ही ‘मज़े ले रहे हैं’, एक दूसरे की खिल्ली उड़ा रहे हैं, किसी अपरिचित पर कोई लांछन नहीं लगा रहे, किसी को दुःखी नहीं कर रहे, तारीफ कर रहे हैं | अब बुरा भी नहीं लगता | ‘बेटा तुमसे न हो पायेगा’ कह कर एक दूसरे पर हँसते हैं | पर कभी-कभी आसमान का कोई बादल उड़ कर हमारे ऊपर किसी नए विषय की वर्षा कर आता है |
एक लड़की की हाल ही में शादी हुई | उम्र में हम सब से छोटी होगी, तो काफी विवाहित पुरुषों और अविवाहित लड़कों को आश्चर्य भी हुआ | पर मेरे एक मित्र ने उसके बदले रंग रूप पर गौर किया और अपनी बात हमारे सामने रखी – “शादी के बाद लड़कियों में बहुत बदलाव आ जाते हैं” | सोचा, बदलाव तो लड़कों में भी आते होंगे पर खैर, हमेशा बाल कि खाल निकलना अच्छी बात नहीं है | किसी ने पुछा ‘भई कैसे?’ तो उस अमुक नव विवाहिता का उदाहरण देते हुए उसने बताया, “कुर्ती-जीन्स और चूड़ीदार सलवार जैसे कपड़े वह पहले भी पहनती थी, पर शादी के बाद से कुर्तिओं के रंग चटक हो गए हैं | कितनी ही लडकियां लाल कुर्तियाँ पहनती होंगी? पर शादी के बाद देखो, पसंद कैसे बदल जाती है” | बात सही भी है, कोई नियम थोड़े ही है कि शादी के बाद आपकी चाल ढाल ऐसी हो जानी चाहिए | जो पसंद हो, वही पहनो? यदि लाल पसंद हो तो वही सही | तो कुछ बदलाव तो ज़रूर ही आते होंगे |
मैंने भी कहा, “बदलाव तो आते ही होंगे, एक नया पड़ाव जो आया है” | मन में तरह-तरह के तत्व-ज्ञान वाले विचार उमड़ आये | उसने सुहागन वाला लाल पहना था, खून की तरह, प्रखर, आकर्षक, खुश | उस लड़की को एक पल के लिए निहारा और मन ही मन सोचा, जो भी है, ‘जच’ रहा है उस पर | कुछ बात तो है इस रंग में, क्या भाव छुपा है इस लाल में जो किसी के सौंदर्य को यों चार चाँद लगा देता है? यह रंग अपने आप में ही पूरी साज सज्जा है | इतने में ही एक मित्र ने मेरी टाँग खींचना शुरू किया, ‘अब तुम इस बात पर एक ब्लॉग-पोस्ट लिखना’, ‘लिखना उस रंग के बारे में और क्या-क्या बदलाव आते हैं’ | मैंने चुप्पी साधने में भलाई समझी | पर जैसे ही चुप्पी घर करने लगी, एक बात ज़बान पर आ-आ कर जाती रही, जो फिर अकेले सीढ़ियां चढ़ते हुए मुस्कान से साथ बाहर निकली:
लाली मेरे लाल की , जित देखूं तितलाल।
लाली देखन मैं गई , मैं भी हो गई लाल।।
~ कबीर