किसी खूंटे से खुद को खुद ही बाँध कर,
देखता हूँ दुनिया को नई आँखों से झाँक कर,

सब तो वही है, पर वही भी तो नहीं है
बताओ भेद भला अब, किसका देखा गया सही है?

इसीलिए, खूँटों से खुद को खुद ही बाँध कर,
देखता हूँ खुद में, नई आँखों से झाँक कर।

Aesthetic Blasphemy | Changing seasons on the same tree
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