जब कभी भी तुम्हारी याद को ले कर खुद से लड़ता हूँ, बहुत मुसीबत होती है । एक 'मैं' तुम्हारा बिन पैसे का वक़ील बन जाता है, और दूसरा 'मैं' वकालत झाड़ता है कि क्यों याद किया! मामला संवेदनशील है । लेकिन बात थोड़ी अजीब है। क्या हो? बेवजूद, एक तरफ़ा ख़याल हो । या नहीं ! खूब तूफ़ान उठते हैं, खूब उपद्रव होता है ।
पर भरोसा रखो, तुम हरदम ही जीतती हो, मैं हारूँ या न हारूँ।