मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे,
मेरे बाद तुम्हे ये मेरी याद दिलाने आएंगे
थोड़ी आँच बची रहने दो, थोड़ा धुआं निकलने दो,
कल देखोगी इसी बहाने कई मुसाफ़िर आएंगे
उनको क्या मालूम विरूपित इस सिकता पर क्या बीती ,
वे आए तो यहां शंख -सीपियाँ उठाने आएंगे
मेले में भटके होते तो घर कोई पहुंचा जाता,
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने पाएंगे
हम क्या बोलें इस आंधी में कई घरौंदे टूट गए ,
इन असफ़ल निर्मितियों शव कल पहचाने जाएंगे
~दुष्यन्त कुमार