stairway to heaven

प्राण न पागल हो तुम यों, पृथ्वी पर वह प्रेम कहाँ..
मोहमयी छलना भर है, भटको न अहो अब और यहाँ..
ऊपर को निरखो अब तो बस मिलता है चिरमेल वहाँ..

~ मैथिलीशरण गुप्त​